भगवान शिव के सम्मान में एक हिंदू लोक त्योहार है नील पूजा। नील पूजा के दिन बंग समुदाय की महिलाएं अपने संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की मंगलकामनाओं के साथ नील षष्ठी का व्रत रखकर शाम को शिव मंदिर में शिव की आराधना करते है। नील षष्ठी की पूजा चैत्र संक्रांति के एक दिन पहले करने की परंपरा है। यह विशेष रूप से बंग समुदाय में प्रचलित है। इसे संतानवती महिलाएं ही अधिकतर करती हैं। संतान की दीर्घायु, सफलता और कल्याण की कामना के साथ महिलाएं नील षष्ठी का निर्जला व्रत रखते है । बंग समुदाय इसे भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह के उल्लास के रूप में मनाता है। भगवान शंकर नीलकंठ हैं, इसलिए इस पूजा का नाम नील पूजा के रूप मनाया जाता है। भिलाई नगर कालीबाड़ी सेक्टर 6 के प्राचीन शिव मंदिर में नील पूजा के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। महिलाएं नील षष्ठी का निर्जला व्रत दिनभर व्रत रखने के बाद शाम को शिव मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद व्रत तोड़ा। इस अवसर पर व्रत रखने वाले महिलाओं को मंदिर के वरिष्ठ पुजारी मेजदा के द्वारा व्रत कथा सुनाया गया एवं शिव जी का अभिषेक किया गया । संतान के नाम से माताओं ने अपने संतान के लिए घी का दीया जलाया। मंदिरों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने संतान के सर्वकल्याण के लिए नील पूजा की।


